"हम क्यों चुने गए हैं?"
हमारी पहचान और उद्देश्य को समझना बहुत महत्वपूर्ण है, और यह समझना कि हम परमेश्वर द्वारा क्यों चुने गए हैं, हमारे विश्वास और जीवन को एक नई दिशा देता है। बाइबल इस विषय पर बहुत स्पष्ट है, कि परमेश्वर ने हमें एक विशेष उद्देश्य के लिए चुना है। यह चुनाव हमारी योग्यता के कारण नहीं, बल्कि परमेश्वर की अनुग्रह और प्रेम का परिणाम है।
1. परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह
हमें चुना जाना हमारे कर्मों या विशेष गुणों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह का फल है। परमेश्वर का यह चुनाव हमें हमारी दीनता और कमजोरी के बावजूद होता है।
इफिसियों 1:4-5 – "क्योंकि उसने जगत की उत्पत्ति से पहले ही हमें उस में चुन लिया, कि हम उसके साम्हने प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों। और अपनी इच्छा की सुमति के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा उसके लेपालक पुत्र हों।"
इस पद से यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर ने हमें पहले से ही चुन लिया था, ताकि हम उसके साथ एक घनिष्ठ और पवित्र संबंध में रह सकें। यह चुनाव हमारे जीवन को परमेश्वर के उद्देश्य की ओर मोड़ता है।
2. चुने जाने का उद्देश्य
हम केवल चुने नहीं गए हैं बल्कि हमें एक विशेष उद्देश्य के लिए चुना गया है। बाइबल हमें बताती है कि हमारे जीवन का उद्देश्य परमेश्वर की महिमा को प्रकट करना और उसकी सेवा करना है। यह सेवा केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे पूरे जीवन में फैली होती है।
1 पतरस 2:9 – "परन्तु तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजक, पवित्र जाति और निज लोग हो, ताकि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।"
इस पद के अनुसार, परमेश्वर ने हमें एक विशेष उद्देश्य के लिए चुना है: उसकी महानता और अच्छाई को संसार में प्रकट करना। हम उसकी ज्योति के वाहक हैं, और हमारी जिम्मेदारी है कि हम संसार में उसकी ज्योति फैलाएं।
3. चुने जाने की आत्मिक जिम्मेदारी
जब हम परमेश्वर के द्वारा चुने जाते हैं, तो इसके साथ एक गहरी आत्मिक जिम्मेदारी भी आती है। हमें केवल चुने नहीं गए हैं, बल्कि हमें दूसरों के लिए एक आदर्श बनकर जीना है। हमारा जीवन और आचरण ऐसा हो कि लोग हमारे माध्यम से परमेश्वर को जान सकें।
यूहन्ना 15:16 – "तुम ने मुझे नहीं चुना, परन्तु मैं ने तुम्हें चुना और ठहराया कि तुम जाकर फल लाओ और तुम्हारा फल बना रहे, कि जो कुछ तुम मेरे नाम से पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।"
इस पद से यह पता चलता है कि हमारा चुनाव केवल व्यक्तिगत उद्धार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके द्वारा हमें संसार में जाकर परमेश्वर के फल उत्पन्न करने का आह्वान किया गया है।
4. विश्वासयोग्यता और धैर्य
चुने जाने का मतलब यह नहीं है कि हमारा जीवन कठिनाईयों से मुक्त होगा। परमेश्वर हमें कठिनाइयों के बावजूद विश्वासयोग्य बने रहने के लिए बुलाता है। वह हमें अपनी आत्मिक यात्रा में धैर्य और विश्वास के साथ बने रहने का निर्देश देता है।
रोमियों 8:28-30 – "और हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिए सब कुछ मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करता है, अर्थात उन्हीं के लिए जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया, उन्हें उसने पहले से ठहराया भी, कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, जिससे वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे।"
इस पद से यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर हमें एक प्रक्रिया में से गुजारता है, जहाँ वह हमें अपने पुत्र यीशु मसीह के स्वरूप में ढालता है। यह आत्मिक प्रक्रिया कठिनाइयों के बावजूद हमें मजबूत बनाती है और हमें परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने के लिए तैयार करती है।
5. चुनाव का भविष्य
परमेश्वर का चुनाव केवल इस जीवन तक सीमित नहीं है। उसका उद्देश्य अनंतकाल के लिए है, जहाँ हमें उसके साथ उसकी महिमा में भागीदार होना है।
प्रकाशित वाक्य 17:14 – "वे मेम्ने से युद्ध करेंगे, और मेम्ना उन पर जय पाएगा, क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है; और जो उसके साथ हैं, वे बुलाए हुए, और चुने हुए, और विश्वासयोग्य हैं।"
इस पद से यह दिखता है कि हमारा चुनाव परमेश्वर की अनंत योजना का हिस्सा है, जहाँ हम उसके साथ उसकी महिमा में शामिल होंगे।
निष्कर्ष:
परमेश्वर का चुनाव हमारे जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। यह केवल एक विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। हमें इस चुनाव को समझकर परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार जीवन जीना चाहिए। हमें उसकी महिमा प्रकट करनी है, उसके उद्देश्यों को पूरा करना है, और दूसरों के लिए ज्योति बनकर जीना है।
परमेश्वर ने हमें प्रेम, अनुग्रह, और उद्देश्य के साथ चुना है, और हमें उसके मार्ग पर विश्वासयोग्यता से चलना है।