"हम मसीह के नाम से पुकारे जा सकते हैं और फिर भी शैतान के अधीन हो सकते हैं"
भूमिका:
कई लोग यह दावा करते हैं कि वे मसीही हैं, मसीह के अनुयायी हैं और उनके नाम से पुकारे जाते हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि हर कोई जो मसीह के नाम से पुकारा जाता है, वास्तव में मसीह का अनुसरण करता हो। बाइबल में हमें कई उदाहरण मिलते हैं जहां बाहरी तौर पर धार्मिक दिखने वाले लोग भीतर से मसीह के सच्चे अनुयायी नहीं होते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम केवल नाम से मसीही न बनें, बल्कि दिल से मसीह का अनुसरण करें।
बाइबल संदर्भ:
मत्ती 7:21 –
“हर एक जो मुझ से कहता है, 'हे प्रभु, हे प्रभु,' स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है।”
यह आयत स्पष्ट करती है कि केवल मसीह का नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है। केवल वे ही जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलते हैं, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे। यह हमें बताता है कि बाहरी रूप से धर्मी दिखना काफी नहीं है, बल्कि दिल से और कर्मों से मसीह का अनुसरण करना आवश्यक है।
मत्ती 15:8 –
“यह लोग अपने होंठों से मेरी बड़ाई करते हैं, पर उनका मन मुझ से दूर है।”
इस आयत में परमेश्वर कहता है कि बहुत से लोग केवल अपने होंठों से उसकी महिमा करते हैं, पर उनका हृदय उससे दूर है। यह हमें सावधान करता है कि हमें मसीह का नाम केवल औपचारिक रूप से न लेना चाहिए, बल्कि सच्चे मन से उसके साथ संबंध बनाना चाहिए।
1 यूहन्ना 3:8 –
“जो कोई पाप करता है, वह शैतान का है; क्योंकि शैतान आरंभ से पाप करता आया है। इसी कारण परमेश्वर का पुत्र प्रकट हुआ, कि वह शैतान के कामों का नाश करे।”
यह आयत यह बताती है कि अगर हम पाप में बने रहते हैं, तो हम शैतान के हैं, भले ही हम मसीह के नाम से पुकारे जाएं। इसलिए हमें मसीह का नाम लेकर पाप में नहीं जीना चाहिए, बल्कि उसके शिक्षाओं के अनुसार चलना चाहिए।
उदाहरण:
यहूदा इस्करियोती का उदाहरण:
यहूदा मसीह के 12 शिष्यों में से एक था, वह मसीह के साथ रहा और उसका नाम लिया। फिर भी, उसने अपने लालच के कारण मसीह को धोखा दिया। यह हमें सिखाता है कि मसीह के नाम के साथ जुड़ना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें उसकी शिक्षाओं और उसकी राह पर चलना होगा।
फरीसीयों और शास्त्रियों का उदाहरण:
यीशु ने फरीसियों और शास्त्रियों की आलोचना की क्योंकि वे केवल धार्मिकता का दिखावा करते थे, लेकिन उनका दिल परमेश्वर के प्रति सच्चा नहीं था। वे अपने कर्मों से शैतान के अधीन थे, जबकि वे परमेश्वर की पूजा करने का दावा करते थे। यह दिखावा हमें बताता है कि केवल बाहरी धार्मिकता दिखाने से हम मसीह के सच्चे अनुयायी नहीं बन सकते।
शिक्षा:
बाहरी धार्मिकता से सावधान रहें:
बहुत से लोग मसीह के नाम का उपयोग करते हैं और बाहरी तौर पर धार्मिकता दिखाते हैं, लेकिन उनका हृदय परमेश्वर से दूर होता है। हमें अपने जीवन में सच्ची आत्मा से मसीह का अनुसरण करना चाहिए।
परमेश्वर की इच्छा को पूरी करना:
केवल मसीह का नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है, हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने जीवन को ढालना होगा। हमारी दिनचर्या और आदतें हमें यह दिखाती हैं कि हम किसके अधीन हैं – मसीह या शैतान।
सच्चाई और नम्रता में चलें:
मसीह के सच्चे अनुयायी वही होते हैं जो सच्चाई और नम्रता से जीवन जीते हैं। पाप से दूर रहकर, मसीह के नाम को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि अपने कर्मों में जीएं।
निष्कर्ष:
मसीह के नाम से पुकारे जाने का अर्थ यह नहीं है कि हम मसीह के हैं। हमें अपने हृदय और कर्मों में मसीह की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए। शैतान के अधीन न होकर, हमें परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए समर्पित होना चाहिए।
“क्योंकि बहुत से बुलाए हुए हैं, पर थोड़े चुने हुए।” (मत्ती 22:14)